खुले आसमान के नीचे गोमती के टीले पर लिख रहे भविष्य की नई इबारत | TV9

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बाजू में बहती गोमती का पाट इन दिनों ज्यादा पसरा है. जलधारा कुछ ज्यादा हलचल लिए. घने पेड़ों और सरपत के झुरमुटों से घिरा टीला. सिर पर खुला आसमान. बादलों की लुकाछिपी. कच्ची जमीन में बच्चे घर से लायी बोरियों पर बैठे हैं. बहुत से मिट्टी पर ही बेफिक्र हैं. ये उनका गुरुकुल है. रोज शाम को वहां जुटते हैं. पास पड़ोस के गांवों से आते हैं. नाव से गोमती पार कर भी पहुंचते हैं. बगल में स्थित कमला नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान में बी.टेक. की पढ़ाई कर रहे कुछ उत्साही विद्यार्थी खुद के साथ इन बच्चों का भविष्य संवारने की कोशिश में लगे रहते हैं.

2011 से वहां “कोशिश” की कक्षाएं चल रही हैं. कमला नेहरु प्रौद्योगिकी संस्थान सुल्तानपुर के 2012 बैच के छात्र चेतन गिरी गोस्वामी और कुछ दोस्तों ने पांच बच्चों के साथ इसकी शुरुआत की थी. चेतन अब मुम्बई में एक राष्ट्रीयकृत बैंक में अधिकारी है. लेकिन जज्बा कायम है और सफर जारी है. संस्थान के छात्रों का एक बैच अपनी पढ़ाई पूरी करके निकलता है और अगले बैच के छात्र अपनी पढ़ाई के साथ “कोशिश” की कक्षाओं की पतवार थाम लेते हैं. कोशिश से जुड़े अनेक पुराने साथी जो अब कहीं दूसरे स्थानों पर हैं, वे भी उसकी कक्षाओं को जारी रखने के लिए योगदान करते रहते हैं .

बच्चों को सही राह दी

कोशिश की कक्षाओं में इन दिनों दो-सवा दो सौ बच्चे पहुंच रहे हैं. एक से बारह तक के. उन्हें पढ़ाने वाले खुद कमला नेहरु प्रौद्योगिकी संस्थान के बीटेक के विद्यार्थी रहते हैं. वे बच्चों को विभिन्न प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी कराते हैं. पास-पड़ोस के गांवों-कस्बे के ये बच्चे कमजोर वर्ग के हैं. कोचिंग और प्राइवेट ट्यूशन का बोझ उनके अभिभावक नही उठा सकते. उनका भविष्य संवारने के इस अभियान का एक दूसरा सुखद पहलू भी है. इन कक्षाओं ने बहुत से बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर दिया. पास-पड़ोस के इलाके के बीच में पढ़ाई छोड़ देने वाले कमजोर वर्गों के अनेक बच्चों को ऐसा करने से रोक दिया. पढ़ाई से विलग मछली मारने, बान बुनने, बीड़ी बनाने जैसे पैतृक रोजगारों में समय से पहले खप जाने या फिर गलत रास्ते पर भटक जाने वाले तमाम बच्चों की जीवन की राह इन वर्षों के बीच “कोशिश” की कक्षाओं ने बदल दी.

…और ये बच्चे बन रहे आत्मनिर्भर

इस वर्ष कोशिश की छात्रा कस्बा निवासी अंशिका यादव को देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में बीए आनर्स (जापानी भाषा) में प्रवेश मिला है. शाहबाज अहमद का दूरसंचार विभाग में चयन हुआ है. पाठशाला से मिली प्रेरणा से कइयों ने नवोदय एवं राजकीय पॉलिटेक्निक में मेरिट में स्थान प्राप्त करके प्रवेश लिया. वहीं गौरी कर्माकर, आशुतोष दुबे, कविता दुबे लखनऊ एवं दिल्ली में जॉब भी कर रहें हैं. 2023 की राजकीय पॉलिटेक्निक की संयुक्त प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक के साथ इस बार प्रिया यादव, खुशी विश्वकर्मा, मुस्कान गुप्ता, राधा निषाद, शक्ति अग्रहरि एवं उत्कर्ष, काजल निषाद ने सफलता प्राप्त की है. संतोष कर्माकर, महक, आंचल, जानिसार का नवोदय के लिए पहले ही चयन हो चुका है.

सपने हैं तो सच करने का हौसला भी

ये बच्चे साधनों से भले कमजोर हों लेकिन उनके इरादे मजबूत हैं. उनकी आंखों में सपने हैं और उन्हें सच करने का हौसला भी. “कोशिश ” उनकी पढ़ाई के साथ उनके भीतर छिपी प्रतिभा विकसित करने और आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश में लगी है. राष्ट्रीय पर्वों और त्योहारों पर इसी टीले पर होने वाले उनके सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इसकी बानगी है. टीले के एक से दूसरे किनारे तक इन बच्चों की कलाकृतियां सजती हैं. डोरी के एक ओर बच्चे और दूसरी ओर को मंच मान लीजिए. वहां कोई पर्दा गिरता-उठता नही. वे प्रस्तुति देते हैं और उनके शिक्षक-निदेशक सामने से ही संकेतों में उनकी सहायता देते हैं. वे एकाकी और अन्य कार्यक्रमों के दृश्यों की जरूरतों के मुताबिक परिधान नही जुटा सकते लेकिन अलग-अलग रंगों की अपनी पोशाकों में भी मस्ती के साथ एकजुट दिखते हैं. उनके आत्मविश्वास का क्या कहना ! तय कार्यक्रमों के अलावा भी बच्चों को अवसर दिया जाता है.

हौसलों का आसमान

फौरन ही कुछ न कुछ प्रस्तुत करने के लिए बच्चे आगे आ जाते हैं. ये बच्चे शर्माते-खिसियाते नही. कहीं लुकने-छिपने का जतन नही करते. “कोशिश” ने उन्हें हौसलों का आसमान दिखाया है और जमीन पर टिके रहने का सलीका भी सिखाया है. वे आगे बढ़ना चाहते हैं. उन्हें पता है कि उसके लिए पढ़ना जरूरी है. क्या पढ़ना जरूरी है? एक मौके पर मुम्बई से आयी मान्या ने उनसे सवाल किया था. हर बच्चे का अंग्रेजी पढ़ने-सीखने-बोलने की चाहत में हाथ उठा. बाद में मान्या ने उन्हें समझाया कि अंग्रेजी जरूर पढ़ा़े, लेकिन एक भाषा के नाते. हिंदी मातृभाषा है. उसे जरूर पढ़ो.

वे दूर रहकर भी हैं साथ -पास

केएनआईटी के अनेक पासआउट अभी “कोशिश” में सक्रिय हैं. विभिन मौकों पर उस गुरुकुल में पहुंचते हैं , जहां उनके लगाए विरवे खिल और मुस्कुरा रहे हैं. गूगल मीट के जरिए भी वे जुड़ते हैं और कक्षाओं और विद्यार्थियों के लिए जरूरी संसाधन जुटाने में सहयोगी बनते हैं. 2016 बैच के सुमित वर्मा इस समय जापान में एक बड़े पैकेज पर हैं. 2017 बैच के सुमित पांडे, आई.आई. टी .दिल्ली में हैं. 2018 में पास आउट हिमालय सिंह , पी.डब्लू.डी. मैनपुरी में हैं. 2016 बैच की रितिका सचान गुड़गांव में और 2014 बैच के सृजन चौबे पी.सी.एस.अधिकारी के तौर पर कानपुर में तैनात हैं. 2015 में यहां से गए जितेंद्र कुमार फिलहाल गुड़गांव में हैं. लड़कियों की टीम की रितिका अगुवाई कर रही हैं और उनका बखूबी साथ अंकिता, प्रीतिमा, मान्या, सीमा और हिमानी आदि दे रही हैं.

हर छात्र के पास जज्बा

इस समय कोशिश में पढ़ा रहे केएनआईटी के छात्र सुरेंद्र गुप्ता मऊ से हैं. वह कहते हैं, कि यहां आने वाले हर छात्र के पास जज़्बा है. उनके अंदर पहले से मोटिवेशन रहता है कि हमें सर जैसा बनना है. हमसे वे सवाल करते हैं, हम भी उनकी पसंद जानते हैं उसी अनुसार हम गाइड करते हैं. अमन यादव फर्स्ट ईयर से ही कोशिश से जुड़े हैं. वह कहते हैं कि हमारी वर्किंग टीम 50 के ऊपर है इसलिए कोई समस्या नहीं आती है. प्रयागराज के अमित सिंह फाइनल के छात्र हैं. वे बताते हैं, कि सीमित संसाधनों में हम बेहतर करने की कोशिश करते हैं. पढ़ाने वालों के जब खुद इम्तिहान और पेपर होते हैं , तब क्या कोशिश” की कक्षाएं स्थगित रहती हैं ? नहीं जब हमारे पेपर होते हैं तो हम आपस में तालमेल कर बच्चों की पढ़ाई जारी रखते हैं. …..और जब बीच पढ़ाई पानी बरसने लगे तब ..? हम बच्चों पर तिरपाल तानते हैं. खुद भले भीगें. कोशिश रहती है कि बच्चे न भीगें !

Source:  https://www.tv9hindi.com/education/teachers-day-2023-know-about-koshish-a-school-who-serve-childern-in-open-sky-2087059.html?fbclid=IwAR350lyY9_L7HDKjvtaKDlKcX7hVtmN49FWiVNdTFSmGimZiM-qM5fEDoDw